Gauri Puja
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Asthi Visarjan
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Yagyopaveet or Janeu Sanskar

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ब्राह्मण लड़के के विकास का जश्न ” उपनयन संस्कार ” या जनेऊ संस्कार (पवित्र धागा समारोह) के माध्यम से मनाते हैं। यह समारोह आम तौर पर सात से चौदह वर्ष की आयु के बीच देखा जाता है। यदि इस आयु अवधि में किसी कारण से समारोह नहीं हो सका, तो इसे विवाह से पहले करना आवश्यक है। धागा समारोह का उद्देश्य एक युवा व्यक्ति को बड़ों की जिम्मेदारियों को साझा करने के लिए तैयार करना है। यह धागा व्यक्ति द्वारा ‘गायत्री’ मंत्र के समूह जाप के साथ पहना जाता है।

जनेऊ संस्कार में तीन धागों का महत्व

  1. गुरु का ऋण.
  2. माता-पिता और पूर्वजों का ऋण।
  3. विद्वानों का ऋण.
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Description

हिन्दू धर्म में शिखा बांधना और यज्ञोपवीत धारण करना संस्कृति के महत्वपूर्ण प्रतीक है | जब हिन्दू धर्म के मुख्य संस्कारों में से एक मुंडन संस्कार किया जाता है तब शिखा को रखा रखा जाता है | यज्ञोपवीत एक संस्कार है जिसमें बालक को तीन सूत्रीय यज्ञोपवित धारण करवाया जाता है इसे पुरे जीवनभर कंधे पर धारण करना होता है| यज्ञोपवित संस्कार क्यों किया जाता है इसका क्या महत्व है और यज्ञोपवीत संस्कार के लिए कौन कौनसी पूजन सामग्री की जरुरत होती है और इसकी विधि क्या है इसके बारे में हम इस लेख में विस्तार से जानेंगें |

जन्म से मनुष्य संस्कारविहीन होता है और वह एक तरह से पशु सामान होता है | इसलिए जन्म के बाद से ही उसमें विभिन्न संस्कारों द्वारा मनुष्यत्व ग्रहण करवाना होता है | यज्ञोपवीत संस्कार में 3 लड़ों के यज्ञोपवीत जिसे की जनेऊ भी कहा जाता है जो की एक तरह से संकल्प होता है स्वार्थरहित आदर्शवादी जीवन जीने का, स्वयं को परमार्थ में लगाने का और पशुता को त्याग कर शुद्ध सच्चरित्र आचरण प्रस्तुत करते हुए मनुष्यता ग्रहण करने का |

यज्ञोपवीत संस्कार कब करना चाहिए:

यह एक संकल्प है इसलिए इस संस्कार को तब करना चाहिए जबकि बालक की बुद्धि और भावना का विकास हो चूका हो और उसे इस संस्कार के महत्व और प्रयोजन की समझ हो और वह स्वविवेक से इसका निर्वाह कर सके |

यज्ञोपवित संस्कार के लिए सामग्री और तैयारी:

  • पुरातन परंपरा में यज्ञोपवीत धारण करने से पहले बालकों का मुंडन करा दिया जाना चाहिए | यदि मुंडन ना कराएं तो बालों को शालीनता के अनुरूप करा लेना चाहिए |
  • जितने बालकों की यज्ञोपवीत होने जा रही है उनके अनुसार ही मेखला ( सूत की डोरी ), कोपीन ( 4 इंच चौड़ी और डेड फुट लम्बी लंगोटी ) , दंड, यज्ञोपवीत और पीले दुपट्टों की व्यस्था कर लेनी चाहिए |
  • यज्ञोपवीत को हल्दी से पीला कर देना चाहिए |
  • जो भी यज्ञोपवीत धारण करने वाले हो उन्हें नए वस्त्र पहनने चाहिए | एक पीला दुपट्टा अवश्य धारण करना चाहिए |
  • कोई पवित्र पुस्तक को पीले वस्त्र में लपेटकर पूजा वेदी पर रखनी चाहिए |
  • सरस्वती, गायत्री और सावित्री पूजन के लिए 3 ढेरियां रख देनी चाहिए |
Additional information
By Pandit Ji

1 Pandit Ji

,

2 Pandit Ji

Place

Varanasi (Kashi)

,

Prayagraj

,

Ujjain

,

Nasik

,

Haridwar

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